खामोश सरकार समानता ला रही है‌ अजय प्रताप सिंह

डी ए डी न्यूज़ नई दिल्ली

      देश आजादी के 75 वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है इस उम्र में किसी भी आदमी के पास कटू अनुभवों की विपुल संपत्ति को अमूल्य धरोहर माना जाता रहा है। यह अलग प्रश्न है कि आज उन अनुभवों से सीखने की चाहत लगभग खत्म ही नहीं हुई, वरन वे बुजुर्ग वार भी अवांछित और अप्रासंगिक होकर रह गये, जैसे देश का प्रजातंत्र, जो सिर्फ ढपोलशंख से अधिक कुछ भी नहीं। फिर भी हम और हमारा प्रजातंत्र महान हैं।

           हमने न्यायिक व्यवस्था में कोलजियम अपनाया यानि विशेष अधिकार जो सुप्रीम कोर्ट के पास सुरक्षित है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट सरकारों की दखलंदाजी नादिरशाही के रुप में देखता है। सरकार यहां बेबस है। इन 75 वर्षों में हमने उच्च प्रशासनिक अमले में आजादी के पहले दिन से ही एक वर्ग विशेष के लिये अघोषित रुप से आरक्षित कर दी, क्या मजाल कोई सरकार उस पर हाथ डाल सके। हमने प्रजातांत्रिक प्रणाली और अपनी अयोग्यता छिपाने के लिये आरक्षण अपनाया, ताकि समाज एक जुट न हो सके, यह करिश्मा कर हमने योग्यता को नकारने का महान कार्य बडी शान से शोषित पीड़ित को बराबरी पर लाने के नाम पर कर डाला।

       कोलजियम से लेकर आरक्षण तथा वर्ग विशेष के लिये उच्च प्रशासनिक क्षेत्रों को आरक्षित कर हमने कोई मानवीय अपराध नहीं किया। उल्टे प्रजातंत्र को और समाज को विघटित कर प्रजातंत्र का भला करने की व्याख्या घडकर भी कोई पाप नहीं किया।

            प्रजातंत्र ने विरोधियों को कानून के शासन के नाम पर बडे सलीखे से किनारे लगाने की कला में तो नापाकिस्तान तक को मीलों पीछे छोड दिया, हमने चोर उच्चकों, भ्रष्टाचारियों, बलात्कारियों, अपहरण उधोग के महारथियों, भू-माफियाओं, कालाबाजारियों, डाकुओं, अराजकतावादियों और विघटन कारियों को एकजुट करने की कला सीखी, तो बूरा नहीं, उन्हें माननीय बनाना पुण्य कर्म है, भोले भाले देशवासियों पर हंटर कैसे चले इसकी बागडोर उनके हाथ में शान से देकर भी हमने प्रजातंत्र का भला ही किया।

        दास प्रथा हमने बडी चतुराई के साथ अपनाकर विश्व विजयी होने का गौरव हासिल करने में भी सफलता इस बीच पायी, ताकि प्रजातंत्र में नये निकम्मे महाराजा धिराजों को प्रतिष्ठित किया जा सके, वह भी कानूनी जामा के साथ, ताकि प्रजातंत्रीय प्रणाली को पंगु बनाया जा सके।

       हम विश्व विजयी विश्व गुरु भारत का शंखनाद करते नहीं अघाते, लेकिन अपने ही देश में कश्मिरियों को सकून की गारंटी के साथ उनके घर भी नहीं लौटा सकते, किसी के घर पर कब्जा करने वाले से कब्जा मुक्त नहीं करा सकते, ताकि प्रजातंत्र को एक नजर से देखने का झूठा नाटक का पर्दाफाश न हो जाए। हम वह सब करने की कला में पारंगत तो हुए जो दुनिया के लिये निषेध है लेकिन आमजन को जनहित गारंटी कानून इन 75 सालों में न दे सके, क्योंकि इसे देने से प्रजातंत्र खतरे में पड सकता है।

              प्रजातंत्र पारदर्शी और अनुकरणीय बने इसलिये हमने महानता की परिभाषा घडने में तनिक भी संकोच नहीं किया, ऐसे ऐसों को भारत रत्न, विशेष उपाधियों से अलंकृत कर दिया, जिन्होंने देश के मूल वासियों के अधिकारों पर पूरी निर्ममता और निर्लज्जता से उनके लिये आरक्षित कर दिया जिन्होंने देश के टूकडे करने में अपने धर्म का निर्वहन बडी निर्लज्जता से किया।

दुनिया में इसकी मिशाल मिलना असंभव है। वह भी कानूनी प्रक्रिया के तहत। यहां अल्पसंख्यक की परिभाषा भी निराली है। करिश्मा तो तब कि यह सुविधा सिर्फ दुनिया के शांति दुतों के लिये बस, मजाल सचमुच के अल्पसंख्यक रत्ती भर कुछ हासिल कर सकें।

      75 वें आजादी दिवस पर फिर झंडा फहराने की रस्म होंगी, झूठे सब्जबाग फिर भोली भाली जनता को दिखाये जायेंगे। अल्पसंख्यक मस्त तो बहुसंख्यक पस्त होकर भी इतने से संतुष्ट होने के लिये अभिशप्त है कि चलो, दंगों का दंश, कांग्रेस का तुष्टीकरण का साम्प्रदायिकता विरोधी काले बिल से तो निजात मिली। यही उपलब्धि कही जा सकती है भारत के प्रजातंत्र की।