दासता के नागपाश में स्वतः जकड़ते हम इंजिनियर अरुण कुमार जैन

डी ए डी न्यूज़ दिल्ली
विश्व के ईसाई देशौं में क्रिसमस महोत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है, वहाँ इस महोत्सव को मनाया जाना स्वाभाविक है क्योंकि उनके एक ही आराध्य हैं व अपने भगवान का जन्मदिन मनाना हर अनुयायी का कर्तव्य है पर हमारे उन नगरों, कालोनीयों, उपनगरों में जहाँ ईसाई 1% भी नहीं हैं, यह पर्व उत्साह, आस्था, समर्पण से मनाया जाना भ्रम, अंधानुकरण व दासता की मनोवृति प्रदर्शित करता है.

  इस आयोजन में सेंटाक्लाज जो एक काल्पनिक पात्र है आपको मोज़े में उपहार देता है. ईसाई समाज सिर्फ कुछ पर्व ही मनाता है, उनका क्रिसमस के उत्साह में डूब जाना स्वाभाविक है. हम भारतीयों के सैकड़ो भगवान हैं, हजारों महापुरुष हैं, संत हैं, जन नायक, क्रन्तिकारी हैं जिन्होंने अपने प्राण देकर हमें स्वतंत्रता दी, इन सबके हमारे ऊपर अनंत उपकार हैं, जिनका ऋण चुकाना असंभव है. उन सभी की जयंती, बलिदान दिवस, मोक्ष दिवस, विजय दिवस न मनाकर हम क्रिसमस के उत्साह में डूबे हैं?

  अपने पैसे, समय खर्चकर हम अपने बच्चों को सेंटा जैसी ड्रेस पहिनाते हैं, जो फिर सालभर में एक दिन भी प्रयोग में नहीं की जाएगी, क्रिसमस ट्री, सितारे आदि खरीदकर, सेंटा के गुण गाकर अपनी ऊर्जा, अपना पैसा व्यय कर रहे हैं व अपने बच्चों के मन में भी अंदर तक हीनता, गुलामी, दासता को स्थापित कर रहे हैं.

इन दिनों गुरु गोविन्द सिँह जी के चारों बेटों ने देश के लिए बलिदान दिया था, आज पंडित मदन मोहन मालवीय जी, अटल बिहारी बाजपेई जी का जन्मदिन है, हमें इनके लिए आयोजन करना चाहिए जिसमे बच्चों को प्रेरणा,श्रद्धा ज्ञान व गौरव की अनुभूति हो. हमारे संतो ने आव्हान किया है कि तुलसी पूजा करें, संक्रांति निकट है जो भारतीय संस्कृति में विशिष्ट स्थान रखती है, उसकी तैयारी करें, जो हर तरह से प्रेरक, लाभदायक व संस्कार दायक है.

  हमारे श्रद्धेय राम, कृष्ण, तीर्थकर ऋषभदेव जी से महावीर स्वामी तक, देशभक्त स्वतंत्रता सेनानियों, संतो, भगवतों, आचार्यो की विशाल श्रँखला हमारी गौरव थाती है, हमें उनके गुण गाने चाहिए जिससे मन में देश भक्ति, श्रद्धा, गौरव, वीरता व स्वाभिमान आये. हमारी पावन नदियाँ, पर्वत व तीर्थ स्थल हैं जिनपर युगों से हमारी आस्था है, हमें वहाँ जाकर अपने गौरव को दृन करना चाहिए.

   हम सेंटा के ग्रीटिंग कार्ड, उसकी ड्रेस अपना, उसके गुणगान कर 31दिसंबर की रात्रि होटलों में व्यंजन, शराब, मांसाहार लेकर, हुल्लड, शोर, शराबा कर अपने व्यक्तित्व को, समाज को, देश को, संस्कृति को, परिवार को सिर्फ और सिर्फ हानि दे रहे हैं.

   मेरा अनुरोध है उन सभी से जो इन सब आयोजनों में लिप्त हैं, कि स्वयं, अपने स्वजनों व बच्चों को अपनी संस्कृति, धर्म, समाज, देश पर गौरवान्वित होने के अवसर प्रदान करें.

"अपने प्रभु, गुरु, संस्कृति पर, श्रद्धा व सम्मान रखें,

गौरव, शक्ति, आस्था का वर, अपनी नई पीढ़ी को दें.

#अमृता हॉस्पिटल फ़रीदाबाद, हरियाण