स्वतंत्र सिंह भुल्लर नई दिल्ली
अन्याय, अत्याचार एवं गैरकानूनी कार्यों को उजागर करने वाला पत्रकार आज सबसे असुरक्षित है। आए दिन पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं, हत्या हो रही है और सरकार चुप्पी साधे बैठी है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का तगमा देकर पत्रकारों को असुरक्षित छोड़ देना लोकतंत्र का मजाक सा बन गया है।
यही हालात पिछले 19 अप्रैल को बुरारी के डायवर्सिटी पार्क में देखने को मिला, जहां वेब पत्रकार इश मलिक आगजनी की इस घटना को कावर कर रहे थे। विधायक संजीव झा एवं बड़ौदा वार्ड के निगम पार्षद गगन चौधरी के गैर कानूनी गतिविधियों को उक्त पत्रकार लगातार उजागर करता रहा हैं। यही कारण है कि उस डायवर्सिटी पार्क में उपस्थित निगम पार्षद गगन चौधरी उनके पिता कुलदीप चौधरी एवं उनके गुर्गों ने पत्रकार पर हमला बोल दिया। अन्य पत्रकार इसके चश्मदीद गवाह बने रहे, परंतु आज तक के ही एक पत्रकार के प्रयास से किसी तरह इश मलिक वहां से भाग निकलने में सफल हुए। उनके चेहरे पर चोट के गंभीर निशान हैं तथा अरूणा आसफ अली अस्पताल में उनका एमएलसी भी हुआ है। थाना वजीराबाद में धारा 323 506 34 के तहत मुकदमा भी दर्ज हुए परंतु कार्यवाही के नाम पर अभी यथास्थिति बनी हुई है। जबकि सांसद मनोज तिवारी ने भी पुलिस से इस संबंध में हस्तक्षेप करने और इसकी जानकारी देने के लिए पत्र भी लिखा है। रेत खनन, सरकारी जमीन पर कब्जा एवं अवैध निर्माण जैसे कार्यों में सँलिप्त जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आवाज उठाना एक पत्रकार के लिए कितना महंगा साबित हो रहा है यह इश मलिक के मामले में देखा जा सकता है। ना पत्रकार को पूरी सुरक्षा है ना उसके साथ हो रही ज्यादती पर सरकार गंभीर है। ऐसी स्थिति में क्या लोकतंत्र जीवित रह सकता है।