नगर निगम : बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस पर पुष्प अर्पित कर किया नमन


डी ए डी न्यूज़ आगरा
डॉ. बाबा सहाब अम्बेडकर अकेले दलितों को ही सम्मान नहीं दिया अपितु उन्होंने सभी संवर्गों के कर्मचारियों एवं सभी जाति धर्म की महिलाओं को भी सम्मान जनक जीवन जीने का अधिकार दिया क्योंकि वह सच्चे राष्ट्रवादी थे = विनोद इलाहाबादी 

आगरा। आज 6 दिसम्बर को बाबा सहाब डाक्टर भीम राव रामजी अम्वेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय कर्मचारी महासंघ के तत्वावधान में अधिकारियों एवं कर्मचारियों की ओर से प्रातः 11 बजे नगर निगम में स्थापित बाबा सहाब अम्वेडकर एवं रामायण रचयिता भगवान वाल्मीकि की प्रतिमाओं पर अपर नगर आयुक्त सुरेन्द्र प्रसाद यादव व अन्य सभी अधिकारियों उत्तर प्रदेश स्थानीय निकाय कर्मचारी महासंघ के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद इलाहाबादी एवं उनकी पूरी टीम की ओर से माल्यापर्ण कर दीप जलाकर उनको श्रद्धांजलि दी गई।

श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद अपर नगर आयुक्त सुरेन्द्र प्रसाद यादव ने कहा कि बाबा सहाब डाक्टर भीम राव अम्वेडकर के बताऐ हुऐ कहा कि संगठित रहो शिक्षित बनो संघर्ष करो मूल मंत्रों को आत्मिक से धारण करके चलने पर ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। महासंघ के जिला अध्यक्ष राजकुमार विद्यार्थी ने अपने संबोधन में बताया कि जब बाबा इस दुनिया में नहीं रहे तो बाबा सहाब के अनुयायी अपने आप को अनाथ समझ कर पूरी तरह से टूट चुके थे। उन्होने बताया की 6 दिसम्बर 1956 राजधानी दिल्ली, रात के 12 बजे थे रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली, मुम्बई, नागपुर मे चारों ओर फोन की घण्टियाँ बज रही थी राजभवन मौन था। संसद मौन थी।राष्ट्रपति भवन मौन था। हर कोई कशमकश मे था। शायद कोई बड़ा हादसा हुआ था। ये किसी बड़े हादसे या आपदा से कम नही था कोई अचानक हमें छोड़कर चला गया था? जिसकें जाने से करोड़ों लोग दुःख भरे आसुओं से विलाप कर रहे थे। देखते ही देखते मुम्बई की सारी सड़कें भीड़ से भर गई। पैर रखने की भी जगह नही बची थी। मुम्बई की सड़कों पर क्योंकि पार्थिव शरीर मुम्बई लाया जाना था और अन्तिम संस्कार भी मुम्बई में ही होना था नागपुर, कानपुर, दिल्ली, चेन्नई मद्रास, बंगलौर, पुणे, नासिक और पूरे देश से मुम्बई आने वाली रेलगाडीयों और बसों में बैठने की जगह नहीं थी। सब जल्द से जल्द मुम्बई पहुंचना चाहते थे और देखते ही देखते अरब सागर वाली, मुम्बई जन-सागर से भर गई। कौन था ये शक्स जिसके अन्तिम दर्शन की लालसा में जन सैलाब रोते-बिलखते मुम्बई की ओर बढ़ रहा था। जब बड़े- बुजुर्ग सभी छोटे-छोटे बच्चों जैसे छाटी पीट-पीट कर रो रहे थे। महिलाएं आक्रोश कर रही थी और कह रही थी मेरे पिता चले गये, अब कौन है हमारा यहाँ चन्दन की चिता पर जब उसे रखा तो लाखों दिल रुदन से जल रहे थे। अरब सागर अपने लहरों के साथ किनारों पर थपकता और लौट जाता फिर थपकता फिर लौट जाता शायद आन्तिम दर्शन के लिये वह भी जोर लगा रहा था। चिता जली और करोड़ो लोगों की आखों बरसने लगी किसके लिये बरस रही थी ये आँखें, कौन था इन सबका पिता, किसकी जलती चिता को देखकर, जल रहे थे करोड़ो दिलों के अग्निकुण्ड यह जो छोड़ गया था इनके दिलों में आँधियाँ, कौन था वह? जिसके नाम-मात्र लेने से गरज उठी थी बिजलियां मन से मस्तिष्क तक दौड़ जाता था। उर्जा का प्रवाह कौन था वह शक्स जिसने छीन लिये खाली कांसे के बर्तन इनके हाथों से, और थमा दी थी कलम, लिखने के लिये एक नया इतिहास आखों में बसा दिये थे नये सपने, होटों पर सजा दिये थे नए तराने और धमनियों से प्रवाहित किया था।

वहीं, इसी क्रम में महासंघ के वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष विनोद इलाहाबादी ने बताया कि बाबासाहेब डॉ अम्बेडकर जी ने दलितों के साथ - साथ सभी संवर्गों के कर्मचारियों सभी जाति धर्म की महिलाओं को सम्मान जनक जीवन जीने के साथ उनको शशक्त बनाया क्योंकि उनको पता था इसलिए उन्होंने हमारे लिए स्वाभिमान और अभिमान को, दासता की जंजीरें तोड़ने के लिए और हमें दिया प्रज्ञा का शस्त्र। चिता जल रही थी अरब सागर के किनारे और देश के हर गांव के किनारे में जल रहा था। एक श्मशान हर एक शक्स की आँखों में और दिल मे भी जो नहीं पहुंच सका था अरब सागर के किनारे। एक एक व्यक्ति अपनी आंख से एक टक देख रहा था वह उसकी प्रतिमा या गांव के झण्डे को, जिसमे नीला-चक्र लहरा रहा था। वह बैठा था भूख-प्यास भूलकर अपने समूह के साथ उस जगह जिसे वह बुद्ध - बिहार कहता था और गांव- शहर मे सारे समूह भूखे-प्यासे बैठे थे। उसकी चिता की आग ठण्डी होने का इंतजार करते हुए कौन सी आग थी, जो वह लगा कर चला गया था । क्या विद्रोह की आग थी? या थी वह संघर्ष की आग थी आग, भूखे-नंगे बदनों को ढकने की आग असमानता की धज्जियां उड़ा कर, समानता प्रस्थापित करने की आग, चावदार तालाब पर जलाई हुई आग अब बुझने का नाम नही ले रही थी, धूं-धूं जलती मनुस्मृति, धुयें के साथ खत्म हुई थी। क्या यह वही आग थी, जो जला कर चला गया। सारे ज्ञानपीठ स्कूल कालेज मरुभूमि जैसे लग रहे थे। युवा-युवतियों की कलकलाहट आज मौन थी।जिनके हाथ में कलम थमाई, शिक्षा का महत्व समझाया, जिन्हे जिन्दगी जीने का मकसद दिया, राष्ट्र प्रेम की ओत-प्रोत भावना जगाई। वह युगान्धर, वह प्रज्ञासूर्य, काल-कपाल से ढल गया था। जिस प्रज्ञा- तेज ने चेहरे पर रोशनियां बिखेरी थी, क्या वह अन्धेरे मे गुम हो रहा था बड़ी अजीब कशमकश थी, भारत का महान पत्रकार, दुरद्रष्टा, अर्थशास्त्री क्या दृष्टि से ओझल हो जायेगा। सारे मिलों-कारखानों पर ऐसा लग रहा था जैसे हड़ताल चल रही हो, सुबह-शाम आवाज देकर जगाने वाली धुँआ भरी चिमनियां भी आज चुप-चाप थी।खेतों में हल नहीं चला पाया किसान- क्यो सारे आफिस, सारे कोर्ट, सारी कचहरियां सुनी हो गई जैसे-सुना हो जाता है बेटी के विदा हो जाने के बाद बाप का आँगन। सारे खेत मजदूर, किसान असमंजस मे थे। ये क्या हुआ ? उनके सिर का छत्र (ताज) छिन गया था। वह जो चन्दन की चिता पर जल रहा है। उसने ही तो जलाई थी, जबरन जोत मजदूर आन्दोलन की। वही तो था आधुनिक भारत का मसीहा। सारे मिलों-कारखानों पर होती थी जो हड़तालें- आन्दोलन अपने अधिकारों के लिये उसकी प्ररेणा भी तो वही था। जिसने मजदूरों को अपना स्वतंत्र पक्ष दिया और संविधान में लिख दी वह सभी बातें जिन्होंने किसानों, खेतिहरों, मजदूरों के जीवन में खुशियां बिखेरी थी। इधर नागपुर की दीक्षा भूमि पर मातम बिखरा था । लोगों की चीखें सुनाई दे रही थी - बाबा चले गये, हमारे बाबा चले गये। आधुनिक भारत का वह सुपुत्र जिसने भारत मे लोकतंत्र का बीजारोपण किया था जिसने भारत के संविधान को रचकर भारत को लोकतांत्रिक गणराज्य बनाया था हर नागरिक को समानता, स्वतंत्रता और न्याय का अधिकार दिया था। वोट देने का अधिकार देकर देश का मालिक बनाया था क्या सचमुच वह शक्श नहीं रहा ? कोई भी विश्वास करने को तैयार नहीं था। लोग कह रहे थे अभी तो यहां बाबा की सफेद गाड़ी रुकी थी बाबा गाड़ी से उतरे थे, सफेद पोशाक मे देखो, अभी बाबा ने पंचशील दिये थे। बाइस प्रतिज्ञाओं की गुँज अभी आसमान में ही तो गुंज रही थी । वो शान्त होने से पहले ही बाबा शान्त नही हो सकते। भारत के इतिहास ने नई करवट ली थी

जन-सैलाब मुम्बई की सड़कों पर बह रहा था। भारतीय संस्कृति मे तुच्छ कहलाने वाली नारी जिसे हिन्दू कोड बिल का सहारा बाबा ने देना चाहा और फिर संविधान मे उसके हक - अधिकार आरक्षित किये। ऐसी मां-बहने लाखों की तादात मे शमशान - भूमि पर थी। यह सड़ी-गली धर्म- परम्पराओं के मुंह पर एक जोरदार तमाचा था। क्योकि जिन महिलाओं को श्मशान में जाने का अधिकार भी नहीं दिया, ऐसी करीब तीन लाख महिलाएं बाबा के अन्तिम दर्शन को पहुंची थी। भारत का यह युगन्धर संविधान निर्माता, प्रज्ञातेज, प्रज्ञासूर्य, महासूर्य, कल्पपुरुष नवभारत को नवचेतना देकर चला गया। एक उर्जास्रोत देकर समानता स्वतंत्रता, न्याय, बन्धुता का पाठ पढ़ाकर। उस प्रज्ञासूर्य की प्रज्ञा किरणों से रोशन होगा हमारा समाज और हम पूरे विश्वास के साथ आगे बढेगे,हाथो मे हाथ लिये,मानवता के रास्ते पर, जहाँ कभी सूर्यास्त नहीं होगा जहाँ कभी सूर्यास्त नहीं होगा जहाँ कभी सूर्यास्त नहीं होगा।

श्री इलाहाबादी ने आगे कहा कि साथियों हमारे इस महान भारत के महान समाजशास्त्री,अर्थशास्त्री, इतिहास के जानकार, मानव-विज्ञान के ज्ञाता, बौद्ध- पालि और संस्कृत साहित्यों के गहन जानकार, सम्पूर्ण वेदों और उपनिषदों का अध्ययन करने वाले, महान लेखक-पत्रकार, मानवाधिकारों के संरक्षक, विश्व के सभी संविधानों के गहन जानकार, कानून विशेषज्ञ, भारतीय संविधान के निर्माता, आधुनिक भारत के निर्माता, महान राजनीतिज्ञ, सिम्बल आफ नालेज, भारतरत्न बोधिसत्व बाबा साहब डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के परिनिर्वाण दिवस पर विनम्र अभिवादन, कोटिशः नमन एवं श्रद्धांजलि तभी सच्ची अर्पित होगी। जब हम उनके अथक प्रयासों द्वारा लिखित संविधान की रक्षा के लिए सभी संकल्पित नहीं होते। इसलिए आज बाबा सहाब की प्रतिमा पर संकल्प लें की हम हमेशा संविधान की रक्षा करेंगे। इसके लिए हमें चाहें कोई भी कुर्बानी देनी पड़े। तब जाकर बाबा सहाब को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित होगी। 

इस दौरान कार्यक्रम में सुरेन्द्र प्रसाद यादव, बी एल गुप्ता मुख्य अभियंता, विनोद इलाहाबादी, डाक्टर अतुल भारती, विजय कुमार कर निर्धारण अधिकारी, पवन कुमार जे ई, राजकुमार विद्यार्थी, हरीबाबू वाल्मीकि, चौधरी सपन सिंह,रोहित लवानिया, अमित नरवार, अनिल राजौरिया, शरद थनवार, सुमित चौहान, रेशम सिंह चाहर, धर्मेन्दर ब्रहम, मनीष वाल्मीकि, सौनू चौहान, अभिषेक चौहान, राहुल नरवार, कान्हा ठाकुर आदि गणमान्य लोग मौजूद रहें।