मुख्यमंत्री अधिवक्ता मेडिकल पॉलिसी केजरीवाल की वोट बैंक की राजनीति: एडवोकेट हरीचंद

मनोज मणि नई दिल्ली
 दिल्ली के अधिवक्ताओं को साधने के लिए दिल्ली सरकार ने मुख्यमंत्री अधिवक्ता मेडिकल पॉलिसी की घोषणा की। परंतु इस पॉलिसी को दिल्ली में लागू करने में तरह तरह के भेदभाव किए जा रहे हैं। इसकी जानकारी देते हुए दिल्ली के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीचंद जाखड़ ने बताया की पॉलिसी के तहत सरकार को अधिवक्ताओं को मेडिकल पॉलिसी का लाभ देना था जो दिल्ली बार काउंसिल में रजिस्टर्ड हो कर दिल्ली के विभिन्न कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे हैं। परंतु मुख्यमंत्री केजरीवाल का उद्देश्य इस योजना के द्वारा दिल्ली के वकीलों को अपना मतदाता बनाना है। उन्हें दिल्ली के वकीलों के कल्याण एवं उसके दुख दर्द से कोई लेना देना नहीं है। इसी कारण दिल्ली में बतौर पंजीकृत अधिवक्ता जो एनसीआर में निवास करते हैं को अरविंद केजरीवाल सरकार ने इस योजना से वंचित कर दिया है। हालांकि यह योजना दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों के लिए था, चाहे उनका निवास एनसीआर में ही क्यों ना हो, परंतु केजरीवाल सरकार इसे वोट बैंक के नजरिए से देख रही है। उन्हें एनसीआर में निवास करने वाले अधिवक्ताओं से कोई राजनीतिक लाभ होता नहीं दिख रहा है। सीनियर रेसिंडेंट अधिवक्ता रमेश गुप्ता पूर्व चेयरमैन दिल्ली बार काउंसिल के नेतृत्व में एक याचिका दायर की गई जो कि दिल्ली बार काउंसिल की तरफ से की गई थी। अधिवक्ताओं ने जब इस मामले में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो जस्टिस प्रथिबा एम.सिंह के सिंगल बेंच ने अधिवक्ताओं के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। हालांकि इस फैसले से नाराज दिल्ली सरकार ने डबल बेंच में अपील की और डबल बेंच के द्वारा इसमें स्टे ऑर्डर दे दिया गया है। दिल्ली सरकार ने धमकी दी है कि अगर इसमें एनसीआर के अधिवक्ताओं को भी जोड़ने का दबाव आता है तो वह इस योजना को ही निरस्त कर देगी। एडवोकेट हरीचंद ने कहा कि इससे केजरीवाल की मनसा एवं अधिवक्ता प्रेम को आसानी से समझा जा सकता है। दूसरी तरफ इस मेडिकल पॉलिसी के तहत अगर कोई अधिवक्ता हॉस्पिटलाइज होता है तो सरकार द्वारा निर्धारित मेडिकल क्लेम राशि को पूरी तरह दिल्ली सरकार भुगतान नहीं कर रही है उसमें आंशिक रूप से उस बीमार अधिवक्ता को भी हॉस्पिटल के बिल का भुगतान करना पड़ रहा है,जोकि सरासर अनुचित है। मुख्यमंत्री अधिवक्ता मेडिकल पॉलिसी की विंडो कब खुलती है और कब बंद होती है इसका कोई निर्धारित समय नहीं है। ऐसी स्थिति में दिल्ली में प्रैक्टिस करने वाले अनेकों अधिवक्ता इससे वंचित हो गए हैं। अधिवक्ता हरीचंद जाखड़ ने कहा की सरकार अगले 3 महीने के लिए इस मेडिकल पॉलिसी विंडो को खोलकर रखें ताकि जिन अधिवक्ताओं ने आवेदन नहीं किया है वह इसका लाभ ले सके। दिल्ली सरकार के इस पक्षपात पूर्ण पॉलिसी पर जब वरिष्ठ अधिवक्ताओं अधिवक्ता इंदर सिंह बिधूड़ी, अधिवक्ता विनोद कुमार, अधिवक्ता संजय वर्मा पटियाला हाउस, अधिवक्ता प्रमोद कौशिक, अधिवक्ता राकेश लाकड़ा, अधिवक्ता राजीव दुग्गल से इनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गई तो अधिवक्ताओं की एक ही प्रतिक्रिया थी कि दिल्ली सरकार सिर्फ अधिवक्ताओं को अपना मतदाता बनाने की लालच में यह पॉलिसी लाई है, वरना उनके कल्याण से सरकार को कुछ लेना देना नहीं है। जब दिल्ली के प्रैक्टिशनर अधिवक्ताओं को पॉलिसी देने की बात सरकार ने कही है तो चाहे वह दिल्ली से बाहर निवास करते हो तो भी पॉलिसी के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ना चाहिए। दिल्ली सरकार की मंशा कितनी साफ है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब सिंगल बेंच ने अधिवक्ताओं की मांग को वाजिब मानते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया तो सरकार ने डबल बेंच में अपील किया। एडवोकेट हरीचंद ने दिल्ली सरकार से मांग की कि वह दिल्ली में पंजीकृत और प्रैक्टिशनर अधिवक्ताओं को इस पॉलिसी के दायरे में लाए चाहे उनका निवास दिल्ली में न हो । इसके अलावा मेडिकल पॉलिसी के विंडो को अगले 3 महीने तक खुला रखा जाए ताकि सभी अधिवक्ता आसानी से इस पॉलिसी का लाभ ले सके।