आज पूरे देश की बात विस्मृत सी हो रही है जबकि इसके निर्माण में समस्त भारत के लोग एक समग्र सत्ता के बोध के साथ जुड़े थे:लक्ष्मी सिन्हा
डी ए डी न्यूज़ दिल्ली

बिहार (पटना सिटी)  राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने बातचीत में बताया कि कथित बुद्धिजीवी वर्ग में से कोई न कोई आए दिन यह तर्क प्रस्तुत करते रहते हैं कि भारत की विविधता की अनदेखी हो रही है। वह बड़े निश्चय के साथ अपना सुचिंतित संदेह कुछ इस प्रकार कहता है मानो 'भारत' कोई एकल रचना न थी, न है और न उसे होना चाहिए। अक्सर उभरती ऐसे सोच की प्रेरणाएं भारत की अंतनिहित स्वाभाविक एकता को संदिग्ध बनाकर उसे प्रश्ऩकित करती रहती है। उसी का बखान करते हुए एकता की समस्या खड़ी की जाती है। इसी धारणा की स्थापना के लिए भाषा,धर्म,जाति,रंग, पहनावा,खान_पान क्षेत्र और प्रथा यदि को दिखाया जाता है। वास्तविकता यही है की दृश्य जगत में मिलने वाली विविधता की कोई सीमा नहीं है और न हो सकती है। वहीं प्रत्येक विविधता से कुछ और विविधताएं भी जन्म लेती है। विविधताओं का विस्तार हर किसी का प्रत्यक्ष अनुभव है। श्रीमती लक्ष्मी सिन्हा ने बताया कि एक ही माता-पिता की कई संताने होती है जो गुणों और स्वभाव मैं एक दूसरे से भिन्न होती है। यहां तक कि जुड़वा बच्चों मैं भी अंतर पाए जाते हैं, किंतु उसे भिन्नता के कारण माता-पिता से उनका संबंध कमतर या असंगत तो नहीं हो जाता। इस सामान्य अनुभव को किनारे रखकर भारत की एकता को कृत्रिम एवं प्रायोजित घोषित करते हुए विविधता के शस्त्र को बड़ी तेजी से आगे बढ़ाने में हमारे प्रगतिशील विचारक महानुभाव सतहि जानकारियों का अंबार लगाते हुए विविधताओं की नई_नई किस्मे खड़ी करते नहीं थकते। श्रीमती सिन्हा ने बताया कि आज पूरे देश की बात विस्मृत सी हो रही है जबकि इसके निर्माण में समस्त भारत के लोग एक समग्र सत्ता के बौद्ध के साथ जुड़े थे और उन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम मैं बलिदान किया था। स्वतंत्रता के यज्ञ में आहुति देने वाले वीर पूरब,पश्चिम,उत्तर और दक्षिण हर ओर से आए थे। वे हर धर्म और जाति के थे और देश के साथ उनका लगाव उन्हें जोड़ रहा था। उनके सपनों का भारत एक समग्र रचना है। यह इसलिए भी जरूरी है कि हम उनका भरोसा न तोड़े और उनकी विरासत को साझा करें। उपनिवेश काल में जो छवि गढ़ी गई, हमें उस छवि से आगे बढ़ते हुए अपने समाष्टिगत स्वरूप को पहचानने की जरूरत है। इस पहचान से एक स्वायत्त राष्ट्र की चेतना वाला भारत ही श्रेष्ठ भारत होगा। भारत ही एक ऐसा देश है कि अनेकता में एकता की मिसाल है।