प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चुक या साजिश: अजय प्रताप सिंह


डी ए डी न्यूज़ दिल्ली

प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे पर हुई सुरक्षा में चूक का मामला अब राजनैतिक,, सामाजिक, प्रशासनिक तथा न्यायिक क्षेत्र में पूरी गर्मी पैदा कर रहा है। चहूं ओर चाय पान की दुकानों तक अब इस मामले में हर कोई बहस में उलझा है। जहां सत्तासीन दल कांग्रेस पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में जानबूझकर छेद छोडने का आरोप लगा रहा है तो कहीं दबे स्वरों में विपक्ष के अन्य दल भीयह मान बैठे हैं कि प्रधानमंत्री के आभामंढल से पस्त कांग्रेस ने जानबूझकर यह अपराध किया है ताकि देशद्रोही ताकतें प्रधानमंत्री को क्षति पहुंचा सकें। अधिकांश जनता का भी ऐसा ही मानना है।

दर असल प्रधानमंत्री मोदी अपने पंजाब दौरे पर पांच जनवरी को लगभग 11 बजे भटिंडा पहुंचे, जहां से उन्हें हेलिकॉप्टर से फिरोजपुर जाना था। लेकिन मौसम के मिजाज का अवलोकन करने के बाद सडक मार्ग से जाने का निश्चय किया गया। प्रधानमंत्री का काफिला यहां से साढे ग्यारह बजे एसपीजी के सुरक्षा कवच में फिरोजपुर के लिये चला। जिसे 1.15 बजे दोपहर में गंतव्य पहुंचना था। यही वह काल खंड था जहां आनन-फानन में अवरोध और साजिश की बू स्पष्ट महसूस की जा सकती है।

बकौल ग्रामीणों के जैसी मीडिया में रिपोर्ट आ रहीं हैं, ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें एस एस पी द्वारा प्रधानमंत्री के सडक मार्ग द्वारा आने की सूचना लगभग साढे ग्यारह बजे दी गई। इसके बाद फिरोजपुर के गांव प्यारेआना में धरना रत किसानों ने फोन पर प्रधानमंत्री के इसी रुट पर आने की जानकारी देकर उन्हें भी धरनास्थल पर इकट्ठा किया गया। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री के तय रुट के अलावा भी वैकल्पिक व्यवस्था के तहत रुट चार दिन पहले तय कर दिये गये थे। इसी रुट पर रिहर्सल भी कर ली गयी थी। तथा खुद प्रदेश के डीजीपी ने प्रधानमंत्री के काफिले को इसी रुट पर चलने की हरी झंडी भी दी थी। इससे पहले एक जनवरी को एसपीजी और पंजाब पुलिस के बीच एडवांस सिक्युरिटी बैठक में सुरक्षा के अनेक पहलूओं पर चर्चा भी हो चुकी थी। इस बैठक में काफिले को नुकसान पहुंचाने की खुफिया एजेंसी के एलर्ट पर भी चर्चा हुई थी। तथा चार जनवरी को इस रुट पर रिहर्सल भी की गयी थी। अतः साफ है कि प्रधानमंत्री का इस रुट पर जाने की योजना अचानक नहीं बनी थी, वरन सरकारी अधिकारियों ने कुछ दिन पहले ही इसे तैयार कर लिया गया था। एसपीजी के डीजीपी ने पंजाब पुलिस के डीजीपी से मौसम की खराबी के कारण सडक मार्ग से जाने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के कई बात भी की गयी थी। इससे साबित होता है कि दाल में कुछ काला जरुर है।

इतनी तैयारी कर लेने के बाद भी एसपीजी को इसी रुट पर किसानों के आंदोलन की जानकारी क्यों नहीं दी गई? या फिर धरना दे रहे किसानों को समय रहते क्यों नहीं हटाया गया? ओर तो और जिस पुल पर प्रधानमंत्री का काफिला लगभग आधा घंटा फंसा रहा, उस पुल के पहले ही काफिले को क्यों नहीं रोका गया? इस रुट पर पुलिस की तैनाती क्यों नहीं थी? पुलिस आला अधिकारियों ने लगातार बढ रही भीड को क्यों बढने दिया? प्रधानमंत्री के काफिले में मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और डीजीपी क्यों नदारत थे? जो कानूनी रूप से अपराधी है। वहीं खालिस्तान आंदोलन के फिर सिर उठाने के बाद से ही पंजाब हाई अलर्ट पर होने की क्या इन्हें जानकारी नहीं थी?

कानूनी रूप से प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित राज्य की होती है वहीं कानूनन लिखा है कि उक्त राज्य का डीजीपी प्रधानमंत्री की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करेंगे। जबकि एस पी जी की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को समीप से सुरक्षा देने की है न कि व्यवस्था करने की।

प्रधानमंत्री की सुरक्षा को उपरोक्त उद्दरण को देखते हुए कहा जा सकता है कि खुला खेल फरकाबादी कर दिया गया था। यानि राज्य के कर्णधारों ने खुला मैदान छोड दिया गया था। इसे संयोग ही कहा जा सकता है कि उग्रवाद प्रभावित और एलर्ट पर चल रहे इस राज्य के देश विरोधी तत्वों को प्रधानमंत्री की एस पी जी से निबटने का पूरा समय नहीं मिल पाया, अन्यथा की कल्पना ही रौंगटे खडे कर देने वाली है। जिसका परिणाम बहुत भयानक होता, उस की कल्पना ही सिहरा देती है।

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के अलावा समुचा देश राजनैतिक दल के अलग भी सुप्रीम कोर्ट तक में अब इस पर बहस छिडी है। जिसमें पंजाब हाईकोर्ट तो खुले तौर पर इस प्रकरण पर नाखुशी जाहिर कर चुका है।

चर्चा अब राष्ट्रवादियों के बीच इस बहाने सरकारी उदासीनता पर भी होने लगी है। कहा जा रहा है कि पहले सीएए और एन आर सी के बहाने शाहीन बाग एक प्रयोगात्मक देश को अस्थिर करने का ट्रायल था जिसके बाद दिल्ली में देशद्रोही पूरे पांच दिन तक कतालो गारत का नंगा नाच नाचते रहे। फिर एक साथ किसानों के आंदोलन के नाम पर देश की राजधानी को बंधक बनाना। जिसमें हर वह कूत्य किया गया जो अमानवीय और गैरकानूनी था। लेकिन सरकारी अधिकारियों और शासन भी प्रयोग ही करता रहा, जो देश विरोधियों के हौसले बढ़ाने वाला साबित हुआ। लोगों का मानना है कि यदि सरकार ने उन अमानवीय और देश की प्रजातांत्रिक व्यवस्था को तहस नहस करने के इन प्रयासों को समय रहते सख्ती से कुचला होता तो प्रधानमंत्री की सुरक्षा के खिलाफ ऐसा कूत्य करने का साहस कदापि न होता। देश को अस्थिर करने के षड्यंत्र मे अब देश का अधिसंख्य मानस विरोधी दलों को मानने लगा है। हालांकि केन्द्रीय ग्रह मंत्री ने चौबीस घंटे में इस प्रकरण की रिपोर्ट तलब करने का नोटिस जारी किया है। वहीं तीन सदस्यीय कमेटी का गठन भी किया गया है जो तीन दिन में अपनी रिपोर्ट देगी। वहीं सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण पर एक रिट दायर की गई है।

समझने की बात सिर्फ इतनी है कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने वाली कांग्रेस नीत सरकार को बर्खास्त क्यों नहीं किया गया? इससे पहले बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने भी सरकारी अधिकारियों के बेजा इस्तेमाल की नयी इबारत लिखी जा चुकी है। तिस पर भी ढाक के तीन पात। वहीं सवाल अब यह उठता है कि जबसे बीजेपी सरकार सत्ता में आई है तभी से नित नये षड्यंत्र क्यों? क्या देश में संगठित राजनीतिक षडयंत्रकारियों के षड्यंत्रों को भी जांच के दायरे में लाया जायेगा? यदि नहीं तो इसके लिये आने वाली पीढियां कभी माफ नहीं करेंगी।