यूपी में रक्षक ही बन जाए भक्षक तो जनता कहां जाए...

-एक विवाहिता के साथ जघन्य क्रुरता पर आखिर मौन क्यों पुलिस प्रशासन



डीएडी न्यूज, नई दिल्ली
महिला सुरक्षा को लेकर आज चाहे हम सडकों पर उतर आए हैं, चाहे रोज मर्रा महिलाओं के अधिकारों को लेकर कैंडल मार्च हो रहा है, लेकिन इन सबके बावजूद भी उनपर अत्याचारों का सिलसिला हैं कि थमने का नाम ही नहीं लेता। आखिर इसके जिम्मेदार कौन हैं। हम या हमारी प्रशासन व्यवस्था?
आज कहीं पर औरत के साथ पांच-पांच दरिंदे मिलकर बलात्कार कर रहें है। भूखे भेडियों की तरह उसकी अस्मत को लूट रहें है। ऐसे में मानवता कहां है। महिलाओं की रक्षा करने वाली तमाम संस्थाएं, प्रशासन व सरकार 
कौन सी कुंभकर्णी नींद में सोये पडे है। ये भगवान ही जाने, लेकिन इन सबकी लापरवाही का खामियाजा महिलाओं को उठाना पड रहा है। हैरानी तो तब हो रही है जब पुलिस प्रशासन को पूरे सबूत देने के बाद भी पुलिस आरोपियों की गिरफतारी में मौन साध लेती है। यही वजह है कि आज अपराधियों के हौंसले अपने चरम पर है। 
आज या तो महिलाएं बलात्कार से पीडित हैं, या विवाह उपरांत घरेलू हिंसा या शोषण से । आखिर किस जगह पर उन्हें इंसाफ मिलेगा। यह कहना कठिन होता जा रहा है।


उल्लेखनीय है कि श्रुति सिंघल नामक महिला के साथ उसके पति एवं ससुराल वालों ने ब्लैड से जानलेवा हमला किया तथा उससे उसके बच्चे को भी छीनकर ले गये, परन्तु उत्तर प्रदेश पुलिस ने पीडिता की शिकायत पर कोई कार्रवाई करने की जगह आरोपियों को बचाने में रूचि दिखाई। 
उल्लेखनीय है श्रुति सिंघल पुत्री सुनील कुमार मित्तल निवासी 50 बाजार माघादोस सिकन्दरा बाद की हिमांशु से 10 दिसंबर 2016 को हिंदू रीति रिवाज के साथ विवाह हुआ था। जिसमें जरूरत के हिसाब से घर की सभी वस्तुएं प्रदान की गई थी। परंतु इसके बावजूद भी ससुराल पक्ष वालों द्वारा उसे दस लाख रूपये लाने के लिए उसे प्रतिदिन प्रताडित किया जाने लगा। ऐसा नहीं करने पर उस पर जानलेवा हमला किया गया।  घटना मोहल्ला कानून गोयन छोेटा सरकारी अस्पताल की है। 
पिछले 12 अगस्त को पीडिता के ससुर देवेन्द्र सिंहल सास उषा सिंहल पति हिमांशु सिंघल, ऋषिकांत  गर्ग, मोनू गर्ग, सुमित गर्ग आदि ने पीडिता पर ब्लेड से प्रहार किया। सिर पर घातक वार एवं गर्म चाल फेकने से वह बेहोश हो गई। पीडिता के बेहोश होने पर ससुराल वाले उसके बच्चे रूपया व जेवर लेकर कही फरार हो गये। होश आने पर पीडिता ने अपने पिता को फोन किया और 100 नम्वर पर इस मामले की रिपोर्ट लिखाई । इसके उपरांत स्थानीय पत्रकारों एवं प्रभावशाली लोगों ने हस्तक्षेय कर समझौता करा दिया । परन्तु अत्याचारों का सिलसिला बंद नहीं हुआ। 
यह घटना 20 अगस्त को पुनः दोहराई गई। इस संबंध में जेवर कोतवाली में पीडिता द्वारा एफआईआर दर्ज करने को कहा गया, तो एसएचओ ने एफआईआर दर्ज नहीं की। 
उल्टा आरोपियों को ही बचाने का प्रयास किया। अब पीडिता अपने मायके में तीन-चार महीने से इंसाफ की बांट जोह रही है। उसके बच्चों से भी उसे नही मिलने दिया जा रहा है। एक मां पर क्या गुजर नही होगी इसका सहज अंदाजा  लगाया जा सकता है। यह उत्तर प्रदेश पुलिस की हकीकत है कि एक पीडित महिला को इंसाफ देने की बजाय आरोपियों को ही बचाया जा रहा है। पीडिता को यह भय सता रहा है कि उसके मायके वालों के साथ कोई  अनहोनी न हो या उनपर कोई झूठा केस न बनाया जाए। उक्त पीडित महिला उतर प्रदेश  पुलिस प्रशासन व सरकार से न्याय की गुहार लगा रही है। अब देखना यह है कि क्या उसे उतर प्रदेश  की प्रशासन व्यवस्था न्याय दिला पाएगी?