श्रीमद् भागवत कथा का हुआ भव्य आयोजन

नागु वर्मा उज्जैन


 उज्जैन उन्हेल। मानव सद्भावना जागृति संस्थान गोलोकधाम के निमित्त चल रही संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस भगवान श्री कृष्ण की पावन और मधुर लीलाओं का गान करने के लिए एकत्रित हुए श्रद्धालुओं को श्रीमद्भागवत का रसपान करवाते हुए पंडित शिव गुरु ने कहा कि जब तक सदगुरु की कृपा ना हो तब तक भगवान के चरणों की प्रीति नहीं होती और जिस दिन सदगुरु  की कृपा हो जाती है उस दिन ठाकुर स्वयं मिलते हैं इसीलिए जब भागवत के बारे में कुछ कहा जाता है तो यह कहा जाता है कि कृष्ण प्रेम के अवतार जिसका मन प्रेम से भरा हो वह संसार में प्रेम ही बाटेगा और जिसके हृदय में प्रेम नहीं वह प्रेम बाट ही नहीं सकता।
"माला फिरा कर उमर गवाए ना गया मन का मैंल 
हाथ की माला छोड़ कर बंदे मनका मनका फेर "
मछली सदा जल में रहे धोए बास ना  जाए।।"
अगर मन के भीतर कुछ और भरा है तो कितना भी माला फेर लीजिए कितना भी नाम ले लो कितनी भी कथाएं सुन लो । अगर मन में प्रेम नहीं है तो कितना भी जप कितना भी अनुष्ठान कितना भी कुछ कर लीजिए भगवान और रीझने वाला नहीं बिना प्रेम के मोहन रिझता नहीं प्रेम एक अनुभूति है आत्म अनुभूति है जिसे देखा नहीं जा सकता महसूस किया जा सकता है।


रविवार की तृतीय दिवस की कथा में उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। कथा के दौरान उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है।