डीएडी न्यूज, नई दिल्ली
आज जिंदगी तेजी से रंग बदल रही है। युवा पीढी का जीवन स्तर लगातार तेजी से बदल रहा है। संस्कार व संस्कृति का तेजी से हरण हो रहा है। यह खतरनाक स्थिति है। भारत वर्ष के अंदर खानपान दिनचर्या और संस्कार में तेजी से गिरावट आ रही है।
यह चिंता का भी विषय है और चिंता भी। अगर संस्कार संस्कृति में आ रही गिरावट को नहीं रोका गया तो लाखों वर्ष पुरानी
हमारी पहचान मटियामेट हो जाएगी और हमारी युवा पीढी रोगों की गिरफत में होगी। कोई भी सरकार चाहे जितनी भी अस्पताल व सुविधा बढा दे लेकिन अगर हम बीमार करने वाली परिस्थितियों को पैदा करने वाली परिस्थितियों से अपने आप को नहीं बचाएंगे, तो आहार व व्यवहार में बदलाव लाकर ही हम अपनी संस्कृति और जीवन को बचा सकते है। हम सभी प्रत्येक दिन दूध का इस्तेमाल करते है। यह सोचने का विषय है कि क्या यह वास्तव में दूध है।
गाय, भैंस आदि रखना हमने छोड दिया, तो आखिर दूध कहां से आता है। यह दूध नहीं जहर है। जिसको पीकर हमारी पीढी पल-पल मौत की ओर बढ रही है। चाइनिज व फास्ट फूड का चलन तेजी से युवाओं के बीच बढता जा रहा है। यह भोजन नहीं बीमारियों का न्यौता है। यदि अपने खान-पान को नहीं बदला गया, तो भारत दुनियां का सबसे बीमार देश की लिस्ट में प्रथम स्थान पर होगा।
इसके अलावा चीनी, नमक और मैदा यह तीन जहर जिंदगी को निगलता जा रहा है। हर रसोई घर में इसने अपना कब्जा जमा रखा है। अगर मीठा पीना है तो चीनी के विकल्प के रूप् में इस्टीविया पौधे का पत्ता इस्तेमाल करने की जरूरत है या गुड, खजूर, शहद आदि का इस्तेमाल करना श्रेयकर है। नमक की जगह सेंधा नमक का इस्तेमाल जहां रोगों को कम करता है, वहीं शरीर में प्रतिरोधक क्षमता भी बढाता है। मैदा की जगह चोकरयुक्त मोटा आटा खाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। शुद्धव एंव स्वास्थ्य वर्धक दूध के लिए गाय का संस्क्षण, सुरक्षा एंव पालन करना जरूरी है। जर्सी गाय का दूध शरीर के लिए विषेश हानिकारक है। उसे नहीं पीना चाहिए। देशी गाय के मूत्र का सेवन करने से षरीर के कई बीमारियों से बचाव होता है और श रीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ जाती है।
इंदौर मध्यप्रदेश में पिछले 27 नवंबर को गौर रक्षा पर एक वृहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें देश के प्रबुद्व लोगों ने भारी संख्या में हिस्सा लिया। जिसमें देसी गाय का गोबर, मूत्र एंव दूध की महत्ता पर प्रकाश डाला गया। घर के आगे देसी गाय को रखना काफी शुभ एंव प्रभावकारी है। यह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा प्रमाणित है। संस्कार के आभाव में हमारे रिश्तों की मार्यादा लगातार टूटती जा रही है। रिश्तों का सम्मान हमारी संस्कृति की पहचान है।
जिसमें भारी गिरावट आई है। सूर्योदय के बाद बिछावन छोडने वाले कभी भी स्वस्थ्य नहीं रह सकते। सूर्योदय से पहले जागें, नीम का दातुन और योग करें और खाली पेट गौमूत्र का सेवन करें। सुख हमारी प्रकृति है मिलावट का खाना हमारी संस्कृति है तथा छीनकर खाना हमारी विकृति है।
संस्कार एंव संस्कृति से टूटता नाता हमारे लिए खतरे की घंटी है-डाॅ दिनेश उपाध्याय