प्लास्टिक जमा कराओ थैला पाओ
भारत में हर साल 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है


 

महेंद्र कुमार, नई दिल्ली 

लगता है लोगों ने पूरे भारत में प्लास्टिक के  खिलाफ जंग लड़ने की ठान ली है. इसी का उदाहरण हमें दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस में देखने को मिलता हैं. यहां स्थित चरखा संग्रहालय में एनडीएमसी और यूएनडीपी के माध्यम से दिल्ली को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए स्टॉल लगाया गया है. यहां लोग प्लास्टिक की बोतल लेकर आते हैं. जिसके बदले में उनको बहुत सुंदर हाथ  से तैयार किया गया कपड़े का थैला दिया जाता है. इस पहल के माध्यम से एनडीएमसी ने  महिलाओं को रोजगार देने का कार्य भी किया है. बताया जा रहा है कि बाल विकास  धारा एनजीओ जो महिपालपुर में स्थित है. वहां महिलाएं इन थेलो को बनाती है. कौटिल्य मार्ग पर सक्षम नाम से एक प्रयोजनों को भी शुरू किया गया है . कनॉट प्लेस स्थित चरखा संग्रहालय में लोग प्लास्टिक की बोतले लेकर आते हैं उनको रीसायकल के लिए यहां से दूसरी जगह भेजा जाता है. बताया जा रहा है कि इस पहल की शुरुआत एनडीएमसी ने 3 अक्टूबर से शुरू की थी. इस वर्ष पूरे देश में महात्मा गांधी की जयंती को स्वच्छता मिशन के रूप में मनाया गया. देश के प्रधानमंत्री ने देश को प्लास्टिक मुक्त बनाने की पहल को आगे बढ़ाने के लिए लोगों को प्रेरणा दी.


इसी को देखते हुए  सरकारी अथवा गैर सरकारी संगठनों द्वारा अपने स्तर पर प्लास्टिक को खत्म करने के लिए पहल की गई. कनॉट प्लेस क्योंकि दिल्ली के केंद्र में स्थित है. जिसके मद्देनजर यहां पर प्लास्टिक की बोतले अथवा प्लास्टिक पुराना सामान लेकर लोग भारी संख्या में आ रहे हैं. लोग जो 10 बोतले प्लास्टिक की लेकर आते हैं तो उन्हें एक सुंदर कपड़े का बना थैला दिया जाता है. स्थानीय कर्मचारियों ने बताया कि लगभग 150 से 200 लोग प्रतिदिन यहां आते हैं. इस परियोजना को लेकर  नई दिल्ली नगरपालिका परिषद की सचिव डॉ रश्मि सिंह का कहना है कि इस पहल को स्वच्छता सेवा पखवाड़े के रूप में  शुरू किया गया. इस  पहल का उद्देश्य यह है कि लोगों को जानकारी दी जाए कि प्लास्टिक मुक्त कैसे रह सकते हैं. हम लोगों को बता रहे हैं कि प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है.


लोगों को पता नहीं है कि प्लास्टिक को रीसाइक्लिंग करके दूसरी प्रकार की वस्तुएं बनाई जा सकती है. हमारे यहां बाजार में खरीदारी करने के लिए लोग अब अपने घर से थैला लेकर जा रहे हैं. प्लास्टिक पर पूरी तौर से रोक लगाना बहुत मुश्किल है. हमारा प्रयास है कि प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग बिल्कुल बंद हो जाए. इस परियोजना में हमें सैकड़ों महिलाएं सहयोग कर रही है. महिलाएं पुराने कपड़ों अथवा नए कपड़े से थेलो का निर्माण कर रही है. इस प्रयोजन से दो कार्य हो रहे हैं एक तो प्लास्टिक मुक्त बनने की तरफ हम आगे बढ़ रहे हैं दूसरा इससे महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में मदद मिल रही है. प्लास्टिक भारत अथवा विश्व के पर्यावरण पर बड़ा असर डाल रही है आज हमारे समुंद्र में हम देखते हैं कि प्लास्टिक के कचरे की वजह से समुंद्री जीव जंतु मर रहे हैं. 


भारत हर साल 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है जिसमें से 40 प्रतिशत एकत्रित नहीं होता और 43 प्रतिशत का प्रयोग पैकेजिंग के लिए किया जाता है जिसमें से ज्यादातर एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक है. एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है. यह अध्ययन 'अन-प्लास्टिक कलेक्टिव' (यूपीसी) की तरफ से किया गया है. यूपीसी प्रकृति से प्लास्टिक प्रदूषण कम करने की पहल है जिसमें अपनी इच्छा से कई साझेदार शामिल हैं.अध्ययन में कहा गया, “पूरी दुनिया में 1950 के बाद से 8.3 अरब टन प्लास्टिक उत्पन्न किया गया और करीब 60 प्रतिशत कूड़ेदान में या प्रकृति में मिल जाता है.'' “भारत सालाना 94.6 लाख टन प्लास्टिक कचरा पैदा करता है जिसमें से 40 प्रतिशत एकत्रित नहीं होता और 43 प्रतिशत का इस्तेमाल पैकेजिंग के लिए किया जाता है जिनमें से ज्यादातर प्लास्टिक एक बार के इस्तेमाल के लायक होता है.

 


 


प्लास्टिक हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है. हमारी पहल प्लास्टिक के खिलाफ रंग ला रही है. लोग अब खरीदारी करने के लिए घर से थैला लेकर जा रहे हैं. इस पहल के लिए सैकड़ों महिलाएं भी सहयोग कर रही है. यह पहल बहुत प्रभावशाली साबित होने वाली है.





 

डॉ रश्मि सिंह सचिव एनडीएमसी

 प्लास्टिक देश के पर्यावरण, नागरिकों, पशु-पक्षियों, समुद्री जीवों आदि के लिए कितना ख़तरनाक है, इस भयावह स्थिति को समझना बहुत आवश्यक है। दरअसल, प्लास्टिक आसानी से विघटित नहीं होता है एवं इसका स्वरूप लगभग 1000 वर्षों तक बना रहता है। विश्व में प्लास्टिक का उपयोग इतना बढ़ता जा रहा है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान जितना प्लास्टिक का उत्पादन हुआ है इतना प्लास्टिक का उत्पादन इन 10 वर्षों के पहले के पूरे समय में भी नहीं हुआ था। इन सभी प्लास्टिक उत्पादों में से 50 प्रतिशत प्लास्टिक उत्पाद केवल एक बार ही उपयोग कर फेंक दिए जाते हैं। प्रत्येक वर्ष इतना प्लास्टिक धरती एवं समुद्र में फेंका जाता है कि यदि ये पूरा प्लास्टिक एक कड़ी के रूप में जोड़ा जाये तो इस कड़ी के माध्यम से भू-भाग के चार चक्कर लगाए जा सकते हैं। वर्तमान में केवल 5 प्रतिशत प्लास्टिक ही रीसायकल हो पाता है शेष 95 प्रतिशत प्लास्टिक कचरे का रूप ले लेता है। पूरे विश्व में लगभग 50,000 करोड़ प्लास्टिक की थैलियाँ प्रतिवर्ष उपयोग में आती हैं। सामान्यतः प्लास्टिक कचरे को समुद्र में फेंक दिया जाता है, इससे समुद्र के पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है एवं समुद्री जीव इसका शिकार हो रहे हैं। प्रतिवर्ष समुद्र में 10 लाख समुद्री पक्षी एवं एक लाख समुद्री स्तनपायी जीवों की जीवनलीला प्लास्टिक पदार्थ खाने से समाप्त हो जाती है। भारत में तो कई पशु-पक्षी (गाय, भैंस आदि) प्लास्टिक के पदार्थों को खाकर अपनी जान गंवा बैठते हैं। प्लास्टिक कचरे का भंडार हमारे देश के लिए भी एक गंभीर समस्या बन गया है। महानगरों, शहरों एवं अब तो ग्रामीण इलाक़ों में भी प्लास्टिक कचरे के भंडार के पहाड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। इसी कारण से प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात कार्यक्रम में इस कचरे के विघटन हेतु कोरपोरेट जगत से भी अपील की है।