दस साल बाद फिर से अपना जादू  बिखेरेगी ऐशियाड सर्कस

जेम्नेस्टिक होगा आकर्षण का मुख्य केंद्र 



कुसुम लता, नई दिल्ली-लगभग चालीस दशकोँ  से दर्शकों  के दिलों पर राज करने वाली एशिया की नंबर वन सर्कस


एशियाड सर्कस दस सालों में पहली बार दिल्ली में आई है और लाई है अपने साथ बेहतरीन एशियाड कलाकारों की भरमार जो अपने कर्तबों से दर्शकों के दिलों को तो छू ही जाएंगे, बल्कि दर्शकों को चकित भी कर देंगे। 
दिल्ली और दिल्ली की पत्रकार ने जब एशियाड सर्कस के मालिक राजू पहलवान से बात की तो उन्होंने बताया कि वे कानपुर से है, देश के विभिन्न क्षेत्रों में सर्कस का शो  दिखाने के बाद अब वह दिल्ली में लगभग दस सालों के बाद सर्कस का शो  लेकर आए है। यह शो  लगभग एक महीने तक चलेगा। रोजाना तीन शो दिखाए जा रहें है। तीन दिनों से आरंभ हो चुकी सर्कस में मुख्य आकर्षण का केंद्र जिमनेस्टिक है। जिसे बेहद पसंद किया जा रहा है। पब्लिक के इंट्रस्ट को देखते हुए
आन लाइन टिकट बुकिंग की सुविधा भी की गई है, जिससे  दर्शकों को लंबी कतारों में लगकर टिकट नहीं खरीदनी पडेगी। वे आसानी से आनलाइन अपना टिकट बुक कर सकते है। इसके लिए , BOOK MY SHOW पर एक बजे, चार बजे व साढे सात  बजे के देशों बिना  परेशानी के बुक कर सकते है। वहीं  देशी -विदेशी कलाकारों की भरमार है, जो अपना करतब दिखाकर दर्शकों का खूब मनोरंजन करेंगे।
कुछ सवालों के जवाब में राजू पहलवान से सर्कस के भविष्य को लेकर पूछा गया तो उन्होंने बहुत ही दुख व्यक्त करते हुए कहाकि हमारे बचपन से चली आ रही सर्कस जो बच्चों, बूढों व युवाओं प्रत्येक वर्ग के लिए मनोरंजन का एक साधन हुआ करता था। लेकिन आज की भागदौड भरी जिंदगी में लोग सर्कस के लिए समय ही नहीं निकाल पाते। 
इसलिए दर्शकों की संख्या पहले के मुकाबले कम हुई है। लोगों का रूझान सर्कस से इसलिए भी कम हुआ है कि इसमें इस्तेमाल होने वाले जानवरों के प्रयोग पर भी रोक लग गई है। उन्होंने कहा कि जानवरों को बेवजह मारा जा रहा है, उसपर प्रतिबंद्ध नहीं लग पा रहा। जानवरों की कई प्रजातियां अपने अंत की ओर बढ रही है,उन्हें नहीं रोका जा रहा, किंतु केवल भारत में सर्कस में प्रयोग होने वाले जावनरों पर रोक लगा दी गई है। जिससे सर्कस जानवरों के करतबों से वंचित हो चुकी है। इसके अलावा सरकार द्वारा सर्कस को आवष्यक मदद न मिलना भी सर्कस की बदहाली का मुख्य कारण है। सर्कस मालिक अपनी जेबों से सारा खर्च वहन कर रहें है, जो अधिक समय तक नहीं चल पाएगा। यदि सरकार ने मदद नहीं की तो अगले कुछ वर्षों में सर्कस धुंधली यादों में बस कर रह जाएगी। 



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आधुनिकता ने छीन ली मेरे बचपन की वो यादें......
हम अपने बचपन में न जाने कितनी बार सर्कस देखने जाया करते थे, कभी वहां मौजूद  शेर की दहाड हमें डराया करती थी, तो कभी जोकर के हंसी ठहाके हंसा-हंसा कर हमारे पेट में दर्द कर देते थे। 
लेकिन आज पैसे कमाने की दौड और एक-दूसरे से आगे बढने की होड ने हमसे हमारा क्या-क्या छीना! 
जनाब कभी गौर करेंगे, तो अंदाजा होगा, कि कुछ मुटृठी भर बडी ख्वाइषों ने हमारी  ख़ुशियों  पर ऐसा डाका डाला कि हम न घर के रहे न ही घाट के।
हमारे बचपन के सुनहरी दिन न जाने किस धुंध में खो गए। वो बंदर-बंदरिया का नाच,वो बाइसकोप में गाने सुनना, रेडियो को कहीं भी साथ-साथ लेकर चला, वो सज-धज कर फोटो खिंचवाने जाना। 
सभी के साथ इकटृठे मिलकर रंगीन टीवी में फिल्म देखनी और सर्कस लगने पर हजारों मिन्नतों के बाद सर्कस देखने जाना। गलियों के नुक्कडों पर बैठक कंचे व स्टैपू खेलना। कहीं खो से गए वो दिन...