वी.पी. सिंह कैम्प, ओखला  में  56 प्रतिशत बच्चे आज भी आंगनवाड़ी सेवाओं से वंचित 

 


नन्द किशोर बैरवा, नई दिल्ली


बच्चों के सर्वपक्षीय विकास के लिए आंगनवाडी का अहम योगदान होता है, वहीं इसके विपरीत 
वी.पी. सिंह कैम्प ओखला में आज भी 56 प्रतिशत बच्चे आंगनवाड़ी सेवाओं से वंचित है।  समेकित बाल विकास परियोजना के सर्वव्यापिकरण के बाद भी इस क्षेत्र में केवल 3 आंगनवाड़ी केन्द्र है, जब कि नियमानुसार बस्ती में 6 आंगनवाड़ी केन्द्र होने चाहिए। यह मुद्दा मोबाइल क्रैशिज एवं खिलता बचपन बाल विकास समूह (स्थानीय लोगों का समूह) द्वारा महिला और छोटे बच्चों की देखरेख एवं सुरक्षा से संबंधित 22 अक्टूबर 2019 को आयोजित हितधारक परिचर्चा के दौरान समुदाय के प्रतिनिधियों ने उठाया। इस परिचर्चा में सदस्य, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग रीटा सिंह, जिला बाल सरंक्षण इकाई अनीता सिंह, बाल कल्याण समिति मो. सलाम खान बस्ती में कार्यरत आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता एवं आशा कार्यकर्त्ता तथा समुदाय से लोगों ने अपने अनुभव साझा किए। बच्चों और महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर कार्यरत गैर सरकारी संस्थाओं नवज्योति डेवलेपमेंट सोसाइटी, आस्था, मातृ सुधा, निपूण, मैजिक बस के प्रतिनिधियों की भागीदारी थी।
परिचर्चा के दौरान सर्वे के आंकड़ों का प्रस्तुतिकरण किया किया गया, जो दर्शाते है कि इस समुदाय में 36 प्रतिशत 3 वर्ष तक के बच्चे अपने आयुनुसार कम वजन के है जब कि एन.एफ.एच.एस.-4 के आंकड़ों के अनुसार 27 प्रतिशत है बस्ती में केवल 64 प्रतिशत बच्चों का ही सम्पूर्ण टीकाकरण हो पा रहा है। महिलाओं की स्थिति में पाया कि आज भी 18 प्रतिशत महिलाओं का प्रसव घर में हुआ है साथ ही योजनाओं के साथ जुड़ाव देखे तो मात्र 9 प्रतिशत महिलाऐं ही प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना का लाभ उठा पाई है। अगर इस बस्ती में सभी बच्चों एवं गर्भवति महिलाओं तक अंागनवाड़ी पहुँच होती तो सायद यह आंकड़े बेहतर हो सकते है। समुदाय से आये लोगों अपने-अपने अनुभवों को साझा किया। स्थानीय निवासी शोभा देवी ने बताया कि मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और मुझे अच्छा काम भी मिल गया था पर मेरे बच्चों की देखरेख की व्यवस्था ना होने के कारण मुझे काम छोड़ना पड़ा। प्रिति के दो छोटे बच्चे है वह उनकों अपनी बुजुर्ग सास के भरोसे छोड़ कर काम पर जाती है उसने साझा किया कि “मुझे हमेशा बच्चों और सास दोनों की चिंता रहती है क्योंकि मेरी सास खुद को देखरेख की जरूरत है पर मजबूरन उनकों बच्चों की देखरेख करनी पड़ती है“। यह परिचर्चा एक ऐसा मंच था जहाँ समुदाय एवं बच्चों के मुद्दों पर कार्यरत हितधारक एक साथ मिलकर बच्चों की देखरेख एवं सुरक्षा से संबंधित मुद्दों पर विचार विमर्श किया।
परिचर्चा में शामिल हितधारकों ने आंकड़ों और समुदाय के अनुभवों को सुनने के बाद अपनी प्रतिक्रिया दी । जिसमें दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य रीटा सिंह और बाल कल्याण समिति से मो. सलाम खान व अनिता सिंह ने जमीनीस्तर के आंकड़ों और समुदाय के अनुभवों को सुनने के बाद कहा सभी बच्चों तक आंगनवाड़ी की पहुँच होनी अनिवार्य है। इसके लिए हम संबंधित विभाग में मांग उठाऐगें साथ ही उन्होने माना कि दिल्ली की शहरी बस्तियों में कामकाजी महिलाओं के छोटे बच्चों की देखरेख एवं सुरक्षा के लिए क्रैश एक अहम् जरूरत है। असंठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के लिए क्रैश व्यवस्था होगी तो उनके बच्चों की देखरेख, सुरक्षा एवं सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित हो पायेगा साथ ही महिलाओं की देश के विकास में आर्थिक भागीदारी बढ़ेगी। हम सब जानते है कि पहले 6 वर्ष मानव जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है, 90 प्रतिशत मस्तिष्क की कोशिकाओं का विकास इसी आयु में हो जाता है। इस आयु में बच्चों के साथ हुई इस तरह की घटनाओं का असर उनके पूरे जीवन काल पर पड़ता है पर आज भी छोटे बच्चों के सवाल न तो राजनीतिक दलों के एजेंडे में है और ना ही सरकार गम्भीरता से ले रहीं है। 


बच्चों के लिए सरकार द्वारा चल रही केवल एक मात्र सेवा ''समेकित बाल विकास परियोजना'' (आई.सी.डी.एस) है जिसके अन्तर्गत दिल्ली में 10897 आंगनवाड़ी केंद्र संचालित हैं। इनमें 42 प्रतिशत बच्चे ही सम्मिलित है जिसके कारण आज भी बहुत सारे जरूरत मंद बच्चे इस योजना का फायदा नहीं ले पा रहे है। यह केंद्र भी केवल 4 घंटे के लिए ही खुलते है। राष्ट्रीय ई.सी.सी.ई. नीति में आंगनवाड़ी सह क्रैश एवं राष्ट्रीय क्रैश योजना के अन्तर्गत बाल देखभाल केंद्र का प्रावधान भी है परन्तु अभी तक पूरी दिल्ली में ''वर्ष 2016 में  दिल्ली सरकार द्वारा उठाये गये ठोस कदम के तहत अब तक 23 आंगनवाड़ी सह क्रैश ही दो जिलों में खोले गये हैं। अभी तक दिल्ली में राष्ट्रीय क्रैश योजना एवं आंगनवाड़ी सह क्रैश से सरकारी 164 झुलाघर है जिसकी पहुँच मात्र 4000 बच्चों तक पहुँच है। आज भी शहरी बस्तियों में परिवारों के लगभग 5 लाख बच्चों की देखरेख और सुरक्षा एक चिंता का विषय बना हुआ है।